चुनावी समर : दलों के दल याद दिला रहे “चिड़ीमार टोला, भांत भांत का पंछी बोला”
अचानक चिड़ीमार टोला याद आ गया। चिड़ियाएं एक जगह तो चुग्गा चुगती नहीं। फुदकती रहती हैं। उनके पीछे पीछे चिड़ीमार टोले को भी दौड़ना-भागना पड़ता है। ठीक वैसे ही जैसे चुनाव से पहले जनता नेता के पीछे और चुनावी मौसम में दल-बल सहित नेता जनता के आगे-पीछे ता था थैय्या कर रहे हैं।
यूं पता नहीं राजनीति में कौन सा दल अपने दलों के साथ मतदाताओं को पसंद आ जाए और चुनाव जीत कर सरकार चलाने लगे । बाकी दल-नेता एक बार फिर दल-बदल का खेल खेलते दिख जाएं। और यह भी मालूम नहीं कि आगरा में आज भी चिड़ीमार टोला बाजार है या सिर्फ कहावतों में ही याद किया जाता है। लेकिन चिड़ीमार टोला याद आने के पीछे ‘‘भांत भांत का पंछी बोला’’ कारण बना है।
हर आदमी जन-पीड़ा के मुद्दों पर अपनी अपनी राय मशविरा देने में ही मशगूल और अव्वल । … और सभी की ये शिकायत… मेरी तो कोई सुनता ही नहीं… !!! सावधान… टोले फिर निकल पड़े हैं… जाल लेकर।
जिधर नजर घुमाओ उधर सत्ता के लिए हाथ-पांव मारते दलों के दल दिखने लगे हैं। तेरी तस्वीर नजर आती है… की तर्ज पर । मजे की बात है ऐसे दलों के दल कभी किसी सदन में, किसी मजलिस में, किसी मजमें में, किसी अनशन पर, किसी टेंशन में, किसी भी स्टेशन पर ‘‘एकस्वर’’ गुंजते नहीं मिलते। लेकिन नहीं… बन जाता है कभी कोई एक मुद्दा जिस पर एकस्वर में विरोध या पक्ष में स्वर गूंजते हैं।
ऐसा तब होता है जब सामर्थ्यवान अपनी सामर्थ्य और आमदनी बढ़ाने के लिए सदन में प्रस्ताव पारित करते हैं…। लेकिन जिस मजलूम के विकास के लिए ये सदन तक पहुंते हैं, उसी मजलूम की अपने हक के लिए मुट्ठियां ताने जाने पर और ’’मुख्यालयों’’ के बाहर ’’मशाल’’ की तरह सुलगते दिखाई देने पर ये सदन वाले छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। यानी ये दलों के दल खुद के लिए तो एक मगर बाकी के लिए तो चिड़ीमार टोला, भांत भांत का पंछी बोला…।
दलों के दल का हर आदमी जन-पीड़ा के मुद्दों पर अपनी अपनी राय मशविरा देने में ही मशगूल और अव्वल । … और सभी की ये शिकायत… मेरी तो कोई सुनता ही नहीं… !!! सावधान… टोले फिर निकल पड़े हैं… जाल लेकर।
