अफलातूनी किस्से – 13 : नेताजी मुखौटे उतारो वरना मतदाता उतार देंगे !
बीकानेर । चुनावी मौसम में अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर रहे देशवासियों के लिए खबर है की राजनीतिक पार्टियों में अब रूठे को मनाने के दिन आ गए हैं। राजनीतिक पार्टियों से जो रूठे हुए लोग हैं, किसी भी वर्ग से, कर्मचारी या जाति आरक्षण के मुद्दे को लेकर, रूठे हुए लोगों को मनाने का काम राजनीतिक पार्टियां करने जा रही हैं।
तैयारियां शुरू हो चुकी है। कुछ घोषणाओं की भी पूरी तैयारियां हो गई है जो लोकलुभावन होगी। अपनी अपनी पार्टी की ओर आकर्षित करने वाली घोषणाएं। और सभी आधारशिला रखने में व्यस्त हैं। शिलान्यास करने में व्यस्त हैं। लोकार्पणों का सिलसिला पिछले काफी दिनों से चल रहा है ।
आने वाले आने वाले समय में गौरव बनने के कार्यों का भी उल्लेख और घोषणाएं हुई है । इन सब का प्रभाव क्या पड़ने वाला है यह तो मतदान के बाद होने वाली मतगणना के परिणाम से ही सामने आएगा। बहरहाल जो लहर आमजन देख रहा है और अपने आप में महसूस कर रहा है उस लहर को प्रदर्शित करने से भी चुप नहीं रहा ।
आमजन चाहता है अब कुछ देश आगे बढ़ता रहे। अगर राजनीतिक पार्टियां चेहरे नहीं बदलेगी तो निश्चय ही मतदाता चेहरों को बदलने का काम कर देंगे । यूं मुखौटे बदलना ऐसे नेताओं के लिए कोई बड़ी बात नहीं है ।
चेहरे पर चेहरे लगाकर भूमिकाओं के नायक बन जाते हैं। अपने ही बोलों को बदल देने वाले देश के नेताओं की कलाओं पर जनता कभी फिदा हुआ करती थी। अब जनता मुखोटे को जुदा करना जान गई है और आने वाले दिनों में मुखौटे गायब होंगे और असली जैसे सामने जमे रहेंगे, ऐसा लगने लगा है।
